इधर हिंदी अकादमी दिल्ली राजधानी क्षेत्र को लेकर तरह तरह के विवाद अखबारों और ब्लाग पर प्रकाशित हो रहे हैं । लेखकों में भी आपस में विभेद और शायद वैमनस्य की भावना भी पैदा की जा रही है । यह दुर्भाग्यपूर्ण है । इसे ले कर जनवादी लेखक संघ ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की । उसे हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं ।
प्रेस विज्ञप्ति
जनवादी लेखक संघ हिंदी अकादमी, दिल्ली को लेकर उठे विवाद पर अपना गहरा क्षोभ व्यक्त करता है। हिंदी अकादमी की संचालन समिति ने हिंदी के वरिष्ठ और सम्माननीय साहित्यकार श्री कृष्ण बलदेव वैद को शलाका सम्मान देने का जो निर्णय लिया, उसको राजनीतिक और प्रशासनिक हस्तक्षेप द्वारा निरस्त कराने की कोशिशों की ज.ले.स. घोर भर्त्सना करता है। ऎसे वरिष्ठ साहित्यकार को अवांछित विवादों में घसीटा जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। इस तरह की स्थितियां इसलिए पैदा होती हैं कि हिंदी अकादमी का गठन जिन उद्देश्यों को लेकर किया गया, उनमें से अधिकांश को दरकिनार कर दिया गया है। जनवादी लेखक संघ लंबे समय से यह मांग करता रहा है कि हिंदी अकादमी का गठन और संचालन लोकतांत्रिक ढंग से किया जाना चाहिए। ऐसा न हो पाने के कारण ही अकादमी में राजनीतिक एवं प्रशासनिक दख़लंदाज़ी की गुंजाइश पैदा होती है।
जनवादी लेखक संघ दिल्ली सरकार से यह मांग करता है कि (1) कृष्ण बलदेव वैद को शलाका सम्मान दिये जाने के संचालन समिति के फ़ैसले का सम्मान करते हुए हिंदी अकादमी, दिल्ली उसकी घोषणा करे;(2) हिंदी अकादमी के कार्य को सुचारु रूप से चलाने के लिए राजनीतिक और प्रशासनिक हस्तक्षेप को रोकने की दिशा में सरकार आवश्यक क़दम उठाये।
(मुरलीमनोहरप्रसाद सिंह) (चंचल चौहान)
जनवादी लेखक संघ दिल्ली सरकार से यह मांग करता है कि (1) कृष्ण बलदेव वैद को शलाका सम्मान दिये जाने के संचालन समिति के फ़ैसले का सम्मान करते हुए हिंदी अकादमी, दिल्ली उसकी घोषणा करे;(2) हिंदी अकादमी के कार्य को सुचारु रूप से चलाने के लिए राजनीतिक और प्रशासनिक हस्तक्षेप को रोकने की दिशा में सरकार आवश्यक क़दम उठाये।
(मुरलीमनोहरप्रसाद सिंह) (चंचल चौहान)
महासचिव महासचिव
1 comment:
जनवादी लेखक संघ को शलाका सम्मान के मौजूदा विवाद में नहीं पड़ना चाहिए, क्योंकि इस विवाद के तथ्यों को लेकर कोई पारदर्शिता हिन्दी अकादमी नहीं दिखा रही है। दूसरा बड़ा कारण है अकादमी की संचालन समिति के सदस्यों का गैर पेशेवर और असहिष्णु रवैयया। यह कैसे हो सकता है कि एक व्यक्ति को उपाध्यक्ष मात्र बनाए जाने से इतने लोग नाराज हों, कहीं गहरी साजिश है जिसके बारे में जलेसं पूरी तरह वाकिफ नहीं है। शलाका सम्मान का विवाद तो बहाना मात्र है। कम से कम अशोक चक्रधर को लेकर जिस तरह की बातें प्रेस में तथाकथित विद्वानों के द्वारा कही जा रही हैं उन्हें लेकर जलेसं को अपनी राय जरूर व्यक्त करनी चाहिए। अशोक चक्रधर कोई ऐरा-गैरा नत्थूखैरा कवि नहीं है, वह गंभीर कविता लिखने वाला लांकतांत्रिक कवि है और दिल्ली में गोलबंदी करके हिन्दी के स्वनामधन्य लेखक घिनौना खेल खेल रहे हैं आज यदि जलेसं अशोक चक्रधर के पक्ष में नहीं बोलता है तो कब बोलेगा।
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