Friday, October 28, 2011

श्रीलाल शुक्ल के निधन पर

प्रेस विज्ञप्ति

दिनांक 28-10-२०११


जनवादी लेखक संघ हिंदी के मूर्धन्य कथाकार श्रीलाल शुक्ल के आकस्मिक निधन पर गहरा शोक व्यक्त करता है। वे पिछले काफ़ी अरसे से बीमार थे।
श्रीलाल शुक्ल का जन्म 31 दिसंबर 1925 को लखनउ के अतरौली गांव में हुआ था। वे एक प्रतिभाशाली छात्र थे, उन्होंने 1949 में राज्य सिविल सेवा में आये और सरकार के अनेक उच्च पदों पर काम किया और 1983 में वे सेवानिवृत्त हुए। श्रीलाल शुक्ल का पहला उपन्यास, 'सूनी घाटी का सूरज', 1957 में प्रकाशित हुआ था, उसके बाद 'अंगद का पांव'(1958), और फिर उसके दस साल बाद 'राग दरबारी' (1968) प्रकाशित हुआ जिसने हिंदी कथासाहित्य में हलचल मचा दी क्योंकि उसमें चित्रित यथार्थ एक दम नये नज़रिये से लैस था, जो पुरानी मान्यता, 'अहा ग्राम्यजीवन भी क्या है' से हट कर समाज की कड़वी सचाई हमारे सामने रख देता है। इसी उपन्यास पर उन्हें 1969 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। उसके बाद उनकी रचनाशीलता लगातार सक्रिय रही और एक के बाद एक उपन्यास प्रकाशित होते रहे, जिनमें 'आदमी का ज़हर'(1972), 'सीमाएं टूटती हैं'(1973), 'मकान'(1976), 'पहला पड़ाव'(1987), 'विस्रामपुर का संत'(1998), 'राग विराग'(2001) विशेष उल्लेखनीय हैं। बच्चों के लिए एक उपन्यास, 'बब्बर सिंह और उसके साथी' भी 1999 में प्रकाशित हुआ। इनके अलावा उनके 4 कहानी संग्रह प्रकाशित हुए। उनके कुछ उपन्यास अंग्रेज़ी और बांग्ला में भी अनूदित हुए। उनके व्यंग्य संग्रह, अनुवाद औ भी प्रकाशित हुए, इस तरह उन्होंने हिंदी साहित्य को अपने प्रभूत लेखन से समृद्ध किया। उनके इस अभूतपूर्व अवदान के लिए भारतसरकार ने उन्हें 2008 में पद्मभूषण से अलंकृत किया, उन्होंने व्यास सम्मान और ज्ञानपीठ पुरस्कार समेत दर्जनों पुरस्कार और सम्मान और पाठकों का स्नेह और आदर अर्जित किया। 1992 में जयपुर में जनवादी लेखक संघ के केंद्रीय सम्मेलन के वे विशिष्ट अतिथि थे, उनका अध्यक्षीय भाषण भारत भर के कोने कोने से आये लेखकों के लिए बहुत ही प्रेरणादायक था। हिंदी साहित्य ने आलोचनात्मक यथार्थवाद का एक सशक्त चितेरा खो दिया, यह क्षति अपूरणीय ही है।
जनवादी लेखक संघ उन्हें अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है, और उनके परिवारजनों के प्रति अपनी हार्दिक संवेदनाएं व्यक्त करता है।

मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, महासचिव
चंचल चौहान, महासचिव

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