छत्तीसगढ की भाजपा सरकार ने मशहूर रंगकर्मी हबीब तनवीर की नाट्रयरचना चरनदास चोर पर पिछले दिनों प्रतिबंध लगा दिया । जनवादी लेखक संघ ने इस फासीवादी कदम की निंदा की । यहां हम उस प्रेस विज्ञप्ति को दे रहे हैं -
प्रेस विज्ञप्ति
जनवादी लेखक संघ छत्तीसगढ की राज्य सरकार के द्वारा मशहूर रंगकर्मी मरहूम हबीब तनवीर के नाटक चरनदास चोर पर लगाये गये प्रतिबंध की कडे शब्दों में निंदा करता है । आर एस एस की फासीवादी विचारधारा से संचालित सरकार से और क्या उम्मीद की जा सकती है् ।
यह नाटक एक राजस्थानी लोककथा पर आधारित है जिसे पहले विजयदान देथा ने अपनी एक रचना में इस्तेमाल किया था । हबीब साहब ने उसे छत्तीसगढी भाषा, संस्कृति, लोक नाट्य और संगीत परंपरा के अनुकूल ढाल कर एक ऐसा नाटक रच दिया जिस आज एक समकालीन क्लासिक की संज्ञा दी जा सकती है। चरनदास का एक ही कसूर है कि वह अपने गुरु को दिये बचन का पालन करता है कि वह कभी झ्ूठ नहीं बोलेगा । आर एस एस की विचारधारा भला सत्य का पक्ष कैसे बरदाश्त कर सकती है। शायद इसीलिए प्रतिबंध लगाने की जरूरत आ गयी । सब जानते हैं कि यह नाटक एक लोककथा पर आधारित है जो 1974 में पहली बार खेला गया । तब से अब तक इस नाटक की न जाने कितनी भाषाओं में और, देश और विदेश में प्रस्तुतियां हुईं। 1975 में श्याम बेनेगल ने इस पर फिल्म भी बनायी। सभी जगह इस नाटक को सराहना मिली । लगता है कि आम जनता को धार्मिक और जातिगत आधार पर लडवाने के मकसद से ही संघ-भाजपा ने यह चाल चली है। वरना क्या वजह हो सकती है कि सतनामी संप्रदाय ने या खुद संघियों ने इस नाटक पर 2004 से पहले कोई आपत्ति क्यों नहीं उठायी थी, जबकि नाटक 1974 से खेला जा रहा था और बहुधा इसके अभिनेता भी सतनामी संप्रदाय से आते थे।
हबीब साहब के नाटकों पर संघ-भाजपा गिरोह समय समय पर हमले बोलते ही रहे है। अपने जीते जी उन्होंने इन हमलों का हर जगह बहादुरी से सामना किया था। यह किसी से छिपा नहीं है कि वे आर एस एस के संकीर्ण फासीवादी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के खिलाफ रचनात्मक स्तर पर संघर्ष करते रहे थे। इसलिए चरनदास चोर पर प्रतिबंध भाजपा सरकारों की फासीवादी सांप्रदायिक मुहिम का ही एक हिस्सा है जिसके लिए सतनामी संप्रदाय की आड ली गयी है । जनवादी लेखक संघ किसी भी कलात्मक और रचनात्मक अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रतिबंध के विरोध में अपनी आवाज बुलंद करता रहा है और इसीलिए तमाम लोकतांत्रिक और प्रगतिशील ताकतों के साथ एकजुटता बनाते हुए हबीब तनवीर के नाटक चरनदास चोर पर प्रतिबंध की भर्त्सना करता है ।
(मुरलीमनोहरप्रसाद सिंह) (चंचल चौहान)
महासचिव महासचिव
मोबाइल नं. 09212644978 मोबाइल नं. 09811119391
यह नाटक एक राजस्थानी लोककथा पर आधारित है जिसे पहले विजयदान देथा ने अपनी एक रचना में इस्तेमाल किया था । हबीब साहब ने उसे छत्तीसगढी भाषा, संस्कृति, लोक नाट्य और संगीत परंपरा के अनुकूल ढाल कर एक ऐसा नाटक रच दिया जिस आज एक समकालीन क्लासिक की संज्ञा दी जा सकती है। चरनदास का एक ही कसूर है कि वह अपने गुरु को दिये बचन का पालन करता है कि वह कभी झ्ूठ नहीं बोलेगा । आर एस एस की विचारधारा भला सत्य का पक्ष कैसे बरदाश्त कर सकती है। शायद इसीलिए प्रतिबंध लगाने की जरूरत आ गयी । सब जानते हैं कि यह नाटक एक लोककथा पर आधारित है जो 1974 में पहली बार खेला गया । तब से अब तक इस नाटक की न जाने कितनी भाषाओं में और, देश और विदेश में प्रस्तुतियां हुईं। 1975 में श्याम बेनेगल ने इस पर फिल्म भी बनायी। सभी जगह इस नाटक को सराहना मिली । लगता है कि आम जनता को धार्मिक और जातिगत आधार पर लडवाने के मकसद से ही संघ-भाजपा ने यह चाल चली है। वरना क्या वजह हो सकती है कि सतनामी संप्रदाय ने या खुद संघियों ने इस नाटक पर 2004 से पहले कोई आपत्ति क्यों नहीं उठायी थी, जबकि नाटक 1974 से खेला जा रहा था और बहुधा इसके अभिनेता भी सतनामी संप्रदाय से आते थे।
हबीब साहब के नाटकों पर संघ-भाजपा गिरोह समय समय पर हमले बोलते ही रहे है। अपने जीते जी उन्होंने इन हमलों का हर जगह बहादुरी से सामना किया था। यह किसी से छिपा नहीं है कि वे आर एस एस के संकीर्ण फासीवादी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के खिलाफ रचनात्मक स्तर पर संघर्ष करते रहे थे। इसलिए चरनदास चोर पर प्रतिबंध भाजपा सरकारों की फासीवादी सांप्रदायिक मुहिम का ही एक हिस्सा है जिसके लिए सतनामी संप्रदाय की आड ली गयी है । जनवादी लेखक संघ किसी भी कलात्मक और रचनात्मक अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रतिबंध के विरोध में अपनी आवाज बुलंद करता रहा है और इसीलिए तमाम लोकतांत्रिक और प्रगतिशील ताकतों के साथ एकजुटता बनाते हुए हबीब तनवीर के नाटक चरनदास चोर पर प्रतिबंध की भर्त्सना करता है ।
(मुरलीमनोहरप्रसाद सिंह) (चंचल चौहान)
महासचिव महासचिव
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