Saturday, June 29, 2013

श्रद्धांजलि सभा



   डा0 शिवकुमार मिश्र के निधन पर श्रद्धांजलि सभा

नयी दिल्ली 28 जून : जनवादी लेखक संघ द्वारा नयी दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान के हाल में आयोजित सभा में राजधानी क्षेत्र के सभी जाने माने लेखकों ने पिछले सप्ताह दिवंगत हुए प्रो0 शिवकुमार मिश्र को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि  अर्पित की। सबसे पहले जलेस के महासचिव मुरली मनोहर प्रसाद सिंह ने मंच पर नामवर सिंह, विश्वनाथ त्रिपाठी, केदारनाथ सिंह, मैनेजर पांडेय व असग़र वजाहत को बुलाया और जलेस केंद्र की ओर से दिवंगत जलेस अध्यक्ष मिश्र जी को श्रद्धासुमन अर्पित किये, और उनकी बीमारी व इलाज आदि की जानकारी देते हुए उनके साथ अपने संबंधों व उनके लेखन व उनकी प्रतिबद्धता का उल्लेख किया। उसके बाद प्रोजेक्टर के माध्यम से स्क्रीन पर शिवकुमार जी को जलेस केंद्र द्वारा आयोजित नागार्जुन जन्मशती के अवसर बोलते हुए दिखाया गया जिससे ऐसा लगा मानो वे हाल में ही हैं। उसके बाद मंच का संचालन जलेस के महासचिव चंचल चौहान ने किया, सबसे पहले जाने माने हिंदी कवि दिनेश शुक्ल ने मिश्र जी को याद करते हुए कहा कि वे उन्हीं के गांव के पास के थे, मैंने अपनी ज़मीन को उन्हीं के माध्यम से जाना। विश्वनाथ त्रिपाठी ने प्रलेस की ओर से अपनी श्रद्धांजलि दी, रेखा अवस्थी ने उन्हें एक कामरेड, एक बड़े भाई और अपनी ही बोली बानी के एक लेखक के रूप में उन्हें याद किया और कहा कि उनकी प्रतिबद्धता हमारी धरोहर है, उनकी इसी प्रतिबद्धता को आगे बढ़ाना सच्ची श्रद्धांजलि होगी। राजेंद्र यादव अस्वस्थ होते हुए भी सभा में आये और कहा कि मिश्र जी एक चिंतक विचारक विद्वान थे, बहस में निस्संकोच हिस्सा लेते थे। जवरीमल्ल पारख ने कहा कि वे अपने विचार सुगठित भाषा में रखते थे, युवा लेखकों को सुनते और उनकी प्रशंसा करते थे, उन्हें प्रेरित करते थे। रमणिका गुप्ता ने 1997 में हजारीबाग में आयोजित जलेस के एक समारोह में हुई मुलाक़ात से ले कर मौजूदा समय तक उनसे मिलने वाली आत्मीयता और साथीपन की भावना का उल्लेख किया। असग़र वजाहत ने उन्हें याद करते हुए कहा कि वे बराबरी के स्तर पर सबसे मिलते और बातचीत करते थे, उनमें एक जीवंतता थी जिससे वे हमें प्रेरित करते थे। इफको के निवर्तमान राजभाषा निदेशक घनशाम दास ने अपने लंबे संबंधों का उल्लेख करते हुए कहा कि उनके घर पर पत्रिकाओं के पुराने से पुराने अंक हैं, वे हमारी राष्ट्रीय धरोहर हैं, उनकी इस धरोहर को संजोना हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। जाने माने कवि उदभ्रांत ने अपने लंबे साहचर्य का हवाला देते हुए अपने उदगार व्यक्त किये।
    केदारनाथ सिंह ने बताया कि उनके निधन के दूसरे दिन इलाहाबाद में आयोजित एक शोक सभा में शामिल होते समय यह अनुभव हुआ कि मिश्र जी किस तरह युवा लेखकों के अपने अपने शिवकुमार मिश्र थे, उनका स्नेह उन सबको मिला होगा, भूलने के इस दौर में स्मृतिसंपन्न व्यक्ति थे। रवींद्र त्रिपाठी ने कहा कि वे अपनी अडिग प्रतिबद्धता के लिए हमेशा याद किये जायेंगे।
    दिल्ली जलेस की तरफ़ से बली सिंह ने श्रद्धासुमन अर्पित किये और सामान्यजन के प्रति उनके प्रेम का उल्लेख किया। सुधा सिंह ने कहा कि वे ऐसे लेखक थे जिनसे बिना संकोच मिला जा सकता था, जनतांत्रिक आचरण करना मुश्किल होता है, वे इस कसौटी पर खरे उतरते थे। कांतिमोहन ने कहा कि वे पहले लेखक थे जो प्रलेस छोड़कर जलेस में आये थे, इस तरह वे प्रलेस और जलेस के बीच की एक कड़ी थे। भगवान सिंह ने कहा कि वे अपने विचारों में जितने स्पष्ट थे, उतने ही धैर्य से दूसरों को भी सुनते थे।
मैनेजर पांडेय ने 1975 में सतना में हुए प्रलेस सम्मेलन में मुक्तिबोध की इतिहास की पुस्तक से प्रतिबंध हटाने के प्रस्ताव के समर्थन में बोलने वाले मिश्र जी को याद किया। वे अपने लेखन और बातचीत में संतुलन बरतते थे, मगर दुविधा की भाषा नहीं बोलते थे। वे किसी अन्य संगठन के बारे में आक्रामक रवैया अख्ति़यार नहीं करते थे। उनका जाना एक आधार का टूटना है।
नामवर सिंह ने कहा कि उनका जाना मेरे लिए एक अप्रत्याशित घड़ी है। वल्लभविद्यानगर में तीन महीने रहने के दौरान उन्हें नजदीक से जानने का अवसर मिला था। वे अपनी मान्यताओं को ले कर स्पष्ट थे, उनमें एक साफगोई थी । गुजरात में हिंदी को प्रतिष्ठा दिलाने में उनकी एक भूमिका थी, वहां के लोगों के बीच उनका बडा आदर था।
 अंत में दो प्रस्ताव पेश किये गये, पहला प्रस्ताव जवरीमल्ल पारख ने उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदा में मारे गये इंसानों के प्रति लेखकों की श्रद्धांजलि के रूप में पेश किया और दूसरा प्रस्ताव शिवकुमार मिश्र के देहावसान पर शोक व्यक्त करते हुए और उनके परिवारजनों के प्रति दिल्ली राजधानी क्षेत्र के लेखकों की संवेदनाएं संप्रेषित करते हुए संजीव कुमार ने पेश किया। उपस्थित जनों ने एक मिनट का मौन रख कर अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि दी।

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