Dated 21-6-2013
प्रेस विज्ञप्ति
जनवादी
लेखक संघ हिंदी के प्रसिद्ध आलोचक और चिंतक डा. शिवकुमार
मिश्र के आकस्मिक निधन पर गहरा शोक व्यक्त करता है। मिश्र जी का आज दिनांक 21 जून को अहमदाबाद
के एक अस्पताल में देहावसान हो गया जहां उनका पिछले 15 दिनों से इलाज चल
रहा था। उनका अंतिम संस्कार कल दिनांक 22 जून को प्रात: 8.00 बजे वल्लभविद्यानगर
में होगा।
डॉ. शिव
कुमार मिश्र का जन्म कानपुर में 2 फरवरी, 1931 को हुआ
था। उन्होंने सागर विश्वविद्यालय से एम.ए.,पी.एच.डी., डी.लिट. की तथा आगरा विश्वविद्यालय से लॉ
की डिग्री प्राप्त की।
डॉ. मिश्र ने 1959 से 1977 तक सागर
विश्वविद्यालय में हिंदी के व्याख्याता तथा प्रवाचक के पद पर कार्य किया। 1977 से 1991 तक वे सरदार
पटेल विश्वविद्यालय, वल्लभ विद्यानगर
(गुजरात) के हिंदी विभाग में प्रोफेसर तथा अध्यक्ष रहे।
डॉ. मिश्र
ने यू.जी.सी. की वितीय सहायता से दो वृहत शोध परियोजनाओं पर सफलतापूर्वक कार्य किया।
उनके 30 वर्षों
के शोध निर्देशन मे लगभग 25 छात्रों
ने पी.एच.डी. की उपाधि हासिल की। डॉ. मिश्र को उनकी मशहूर किताब, ‘मार्क्सवादी साहित्य चिंतन’ पर 1975 में सोवियत लैंड
नेहरू पुरस्कार मिला। भारत सरकार की सांस्कृतिक आदान-प्रदान योजना के तहत 1990 में उन्होंने
सोवियत यूनियन का दो सप्ताह का भ्रमण किया।
मिश्र जी
ने जनवादी लेखक संघ के गठन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी, आपात्काल के अनुभव के बाद अलग संगठन
बनाने का एक विचारधारात्मक आग्रह सबसे पहले उन की तरफ़ से आया था। वे उसके संस्थापक
सदस्य थे, वे जयपुर सम्मेलन में 1992 में जलेस के महासचिव और पटना सम्मेलन (सितंबर 2003) में जलेस के अध्यक्ष चुने गये और तब से अब तक वे उसी पद पर अपनी नेतृत्वकारी भूमिका निभा रहे थे। अपने जीवन के अंतिम क्षण तक वे अपनी वैचारिक प्रतिद्धता
पर अडिग रहे । भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी के
इस समय भी वे सदस्य थे।
मिश्र जी
हिंदी के शीर्षस्थ आलोचकों में से एक थे। उनकी पुस्तकों में से प्रमुख हैं- नया
हिंदी काव्य, आधुनिक
कविता और युग संदर्भ, प्रगतिवाद, मार्क्सवादी साहित्य-चिंतन:
इतिहास तथा सिद्धांत, यथार्थवाद, प्रेमचंद: विरासत
का सवाल, दर्शन साहित्य
और समाज, भक्तिकाव्य
और लोक जीवन, आलोचना
के प्रगतिशील आयाम, साहित्य
और सामाजिक संदर्भ, मार्क्सवाद
देवमूर्तियां नहीं गढ़ता आदि। उन्होंने इफको नाम की कोआपरेटिव सेक्टर
कंपनी के लिए दो काव्य संकलनों के संपादन का भी शोधपूर्ण कार्य किया, पहला संकलन था : आजादी की अग्निशिखाएं और दूसरा, संतवाणी
। मिश्र जी के निधन से हिंदी साहित्य व हमारे समाज के लिए अपूरणीय क्षति हुई है।
जनवादी लेखक संघ ने अपना एक नेतृत्वकारी वरिष्ठ साथी खो दिया है।
जनवादी
लेखक संघ मिश्र जी के प्रति अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है तथा उनके परिवारजनों
व मित्रों के प्रति अपनी संवेदना प्रकट करता है।
मुरली मनोहर प्रसाद
सिंह चंचल चैहान
महासचिव महासचिव
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