Thursday, August 23, 2012
नया पथ का जन.जून 2012 अंक
Tuesday, August 21, 2012
नया पथ जनवरी-जून 2012
प्रकाशित प्रकाशित प्रकाशित
प्रगतिशील सांस्कृतिक आंदोलन के 75 वर्ष पर केंद्रित
संबंधित दुर्लभ सामग्री
पृ0 सं0 508 और आर्ट पेपर के 28 पृ0 पर दुर्लभ चित्र अतिरिक्त
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Friday, May 25, 2012
भगवत रावत के निधन पर
प्रेस विज्ञप्ति
जनवादी लेखक संघ हिंदी के जाने माने कवि रचनाकार भगवत रावत के आकस्मिक निधन पर गहरा शोक व्यक्त करता है। वे अचानक बीमार पड़े और आज 25 मई 2012 को भोपाल में उनका देहांत हो गया । भगवत रावत का जन्म ग्राम टेहरका, ज़िला टीकमगढ़, मध्यप्रदेश, में 13 सितंबर 1939 को हुआ था। उनकी कृतियों में समुद्र के बारे में (1977), दी हुई दुनिया (1981), हुआ किस इस तरह (1988), सुनो हीरामन (1992), सच पूछो तो (1996), बिथा-कथा (1997) अथ रूपकुमार कथा, अम्मा से बातें और कुछ लंबी कविताएं, विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। उनकी बहुत सी कविताएं रूसी भाषा में अनूदित हुईं। उन्हें दुष्यंत कुमार पुरस्कार (1979), वागीश्वरी पुरस्कार (1989), मध्यप्रदेश शासन द्वारा साहित्य का शिखर-सम्मान (1997-98) से सम्मानित किया गया।
भगवत रावत प्रगतिशील जनवादी मूल्यों के प्रति समर्पित रचनाकार थे, वे मध्यप्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष रहे और अपनी सामाजिक विचारधारात्मक प्रतिबद्धता कभी विचलित नहीं हुए। उनकी रचनाओं में शोषित उत्पीड़ित मानव की आशा-आकांक्षाएं चित्रित होती रहीं, और उसके प्रति ‘ढेर सारी करुणा’ की मांग उस मध्यवर्ग से करती रहीं, जो इस दौर में हृदयहीन होता दिख रहा है, अपनी एक कविता, ‘करुणा’ का अंत वे इस प्रकार करते हैं:
पता नहीं
आने वाले लोगों को दुनिया कैसी चाहिए
कैसी हवा कैसा पानी चाहिए
पर इतना तो तय है
कि इस समय दुनिया को
ढेर सारी करुणा चाहिए।
शोषितवर्गों के प्रति अपनी ढेर सारी करुणा समर्पित करने वाला यह कवि इस दुनिया विदा भले ही हो गया हो, मगर उसकी रचनात्मकता हमें सदैव आगे बढ़ने और संगठित रूप में जनवादी प्रगतिशील मूल्यों के रचनाकर्म द्वारा अपने सांस्कृतिक दायित्व का निर्वाह करने की प्रेरणा सदैव देती रहेगी।
जनवादी लेखक संघ भगवत रावत के प्रति अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है और उनके परिवारजनों के प्रति अपनी संवेदना प्रकट करता है।
मुरली मनोहर प्रसाद सिंह चंचल चौहान
महासचिव महासचिव
Mobile: 9811119391
Wednesday, February 15, 2012
विद्यासागर नौटियाल
Dated 15-2—2012
जनवादी लेखक संघ हिंदी के प्रसिद्ध कथाकार, स्वतंत्रता सेनानी एवं कम्युनिस्ट नेता विद्यासागर नौटियाल के आकस्मकि निधन पर गहरा शोक व्यक्त करता है, उनका रविवार 12 फरवरी को सुबह बेंगलूर में निधन हो गया। उनकी उम्र 79 वर्ष थी। अभी पिछले तीन महीने पहले ही साहित्य सेवा के लिए प्रतिष्ठित श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफ्फको साहित्य सम्मान से इफ्फको द्वारा नयी दिल्ली में उन्हें सम्मानित किया गया था जिसके समारोह में दिल्ली के भारी तादाद में आये तमाम साहित्यकारों ने उनको सुना था, उनके निधन की खबर से साहित्य जगत शोक संतप्त है।
उन्होंने अपनी युवावस्था में ही टिहरी की राजशाही के विरुद्ध संघर्ष का झंडा बुलंद किया था, उसके बाद वे जीवनभर किसान और ग्रामीण जीवन से जुडी समस्याओं, शोषित जन की आशा_आकांक्षाओं व संघर्षो को अपने साहित्य के माध्यम से मुखरित करते रहे। "यमुना के बागी बेटे", "भीम अकेला","झुंड से बिछुडा", “उत्तर बायां है" आदि उनकी प्रसिद्ध कृतियां हैं। उनके द्वारा रचित "मूक बलिदान", “भैंस का कट्या" और "फट जा पंचधार" जैसी कहानियां बहुत चर्चित हुई। उन्होंने "मोहन गाता जाएगा" शीर्षक से आत्मकथा भी लिखी। विरोधी तेवर के कारण कई बार उन्हें जेल की यात्राएं भी करनी पडीं।
23 सितंबर 1933 को टिहरी के मालीदेवल गांव में नारायण दत्त नौटियाल एवं रत्ना नौटियाल के घर जन्मे विद्यासागर की प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई। उच्च शिक्षा के लिए वे देहरादून और बनारस में गये। पिछले डेढ दशक से वे देहरादून में रह रहे थे। अस्वस्थ होने के कारण पिछले महीने वे बेंगलूर अपने बडे बेटे के पास इलाज के लिए चले गए थे। रविवार सुबह अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली।
दिवंगत नौटियाल के परिवार में उनकी पत्नी, तीन विवाहित पुत्रियां और दो बेटे हैं। नौटियाल को श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफ्फको साहित्य सम्मान के अलावा "पहल सम्मान" और मध्यप्रदेश साहित्य परिषद के अखिल भारतीय "वीरसिंह देव सम्मान" भी मिला था।
जनवादी लेखक संघ अपने प्रिय लेखक को भावभीनी श्रद्धांजलि देता है तथा उनके परिवारजनों के प्रति संवेदना प्रकट करता है।
मुरलीमनोहरप्रसाद सिंह, महासचिव
चंचल चौहान, महासचिव
शहरयार के निधन पर
दिनांक 14 फरवरी 2012
उर्दू के प्रसिद्ध शायर शहरयार के निधन पर
श्रद्धांजलि
उर्दू के प्रसिद्ध शायर अखलाक़ मोहम्मद खान शहरयार’ के निधन पर जनवादी लेखक संघ गहरा शोक व्यक्त करता है। वे कुछ समय से फेफड़े के कैंसर से पीडि़त थे। शहरयार का जन्म बरेली, उत्तर प्रदेश के गांव आंवला में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा बुलंदशहर में और उच्च शिक्षा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में हुई थी। इसी विश्वविद्यालय में उन्होंने उर्दू के शिक्षक के रूप में काम किया। वे उर्दू विभाग के अध्यक्ष और प्रोफेसर भी रहे और वहीं से 1996 में सेवानिवृत्त हुए। शहरयार अपनी ग़ज़लों के लिए बहुत लोकप्रिय थे। उनकी शायरी में यथार्थ और रूमानियत दोनों एक साथ इतनी खूबसूरती से व्यक्त हुए हैं कि उनको अलग-अलग करना लगभग नामुमकिन है। अपने नज़रिये में वे प्रगतिशील भावबोध के कवि थे। उनका पहला काव्यसंग्रह ‘इस्म ए आज़म’ था, जो 1965 में प्रकाशित हुआ। उनके अन्य लोकप्रिय काव्यसंग्रह हैं: ‘हिज्र का मौसम’, ‘सातवां दर’, ‘शाम होने वाली है’, ‘मिलता रहूंगा ख्वाब में’, ‘नींद की किर्चें’ आदि। उनको 1987 में अपने काव्यसंग्रह ‘ख्वाब का दर बंद है’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ। 2008 में उन्हें सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। शहरयार ने प्रसिद्ध फिल्मकार मुजफ्फर अली की फिल्मों ‘गमन’(1978), ‘उमराव जान’(1981) और ‘अंजुमन’ (1986)के लिए भी गीत लिखे जो बहुत ही लोकप्रिय हुए।
जनवादी लेखक संघ की स्थापना के समय से ही शहरयार जलेस से जुड़े रहे। वे संगठन के उपाध्यक्ष भी रहे और सम्मेलनों में शिरकत करते रहे। उनके देहावसान से उर्दू का एक बहुत बड़ा शायर हमारे बीच से चला गया। यह एक अपूरणीय क्षति है। जनवादी लेखक संघ उनके प्रति अपनी भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित करता है और उनके परिवारजनों के प्रति अपनी हार्दिक संवेदना व्यक्त करता है।
मुरलीमनोहर प्रसाद सिंह, महासचिव
चंचल चौहान, महासचिव