जनवादी लेखक संघ, सहमत, जन नाट्य मंच, और एक्ट वन के संयुक्त तत्वावधान नागार्जुन जन्मशती उत्सव का अभूतपूर्व आयोजन त्रिवेणी सभागार में 15 जून की शाम 6.00 बजे से शुरू हुआ और 9 बजे तक चलता रहा। प्रारंभ में भारी तादाद में उमड़ आये श्रोताओं का स्वागत करते हुए जलेस के महासचिव मुरली मनोहर प्रसाद सिंह ने कहा कि आज के दौर के भयंकर संकट के क्षणों में जनकवि नागार्जुन का कृतित्व नये रचनाकारों के लिए प्रेरणादायी है, अंधकार में मशाल की तरह है। उसके बाद नागार्जुन की तीन कविताओं, ‘लाल भवानी’, ‘लाजवंती’, व ‘शासन की बंदूक’ को संगीतात्मक समूहगान के रूप में प्रस्तुत किया गया।
उसके बाद नया पथ के नागार्जुन जन्मशती विशेषांक के लोकार्पण के साथ परिचर्चा का सत्र शुरू हुआ जिसमें प्रो. शिवकुमार मिश्र(गुजरात), राजेश जोशी (भोपाल) ने अपने विचार रखे और डा. नामवरसिंह ने अध्यक्षता की। शिवकुमार मिश्र ने नागार्जुन के जीवन संघर्षों और उनके बहुआयामी रचनाकर्म को उनकी कविताओं के अर्थ खोलते हुए पेश किया जबकि राजेश जोशी ने बाबा के मैग्नीफाइंग ग्लास और ट्रांजिस्टर का जिक्र करते हुए उनकी प्रतीकात्मकता को रेखांकित किया। अध्यक्षीय भाषण में नामवर जी ने नागार्जुन पर लिखे अपने लेखों का उल्लेख करते हुए कहा कि उन जैसा प्रयोगधर्मा कवि कम ही देखने को मिलता है चाहे वे प्रयोग लय के हों, छंद के हों, विषयवस्तु के हों, वे सच्चे अर्थों में जनकवि थे।
इस आयोजन की सबसे आकर्षक विशिष्टता यह थी कि नागार्जुन की कविताओं को दृश्य-श्रव्य कलारूपों के माध्यम से शास्त्रीयसंगीत गायिका अंजना पुरी और सूफी संगीत गायक मदनगोपाल सिंह ने अनोखा रूप दिया जिनकी प्रस्तुतियों पर दर्शक मुग्ध हो कर तालियो की गड़गड़ाहट से उनको दाद देते रहे। बीच बीच में नागार्जुन की कविताओं का पाठ जाने माने रचनाकारों ने किया जिनमें प्रमुख थे, जुबैर रज़वी, मैत्रेयी पुष्पा, लीलाधर मंडलोई, दिनेश कुमार शुक्ल, मंगलेश डबराल और अशोक तिवारी। एन एस डी के रंगकर्मी केशव के निर्देशन में ‘बिगुल’ नाट्यग्रुप ने बाबा की कविताओं का एक नाट्य-कोलाज पेश किया जिसकी सात कडि़या थीं और यह एक अनोखा प्रयोग भी था।
अंत में नागार्जुन की कविता ‘मेघ बजे’ को शास्त्रीय संगीत की बंदिश में जन नाट्य मंच(कुरुक्षेत्र) के कलाकारों ने पेश किया जिसकी काफी सराहना हुई।
आयोजन का संचालन जलेस के महासचिव, चंचल चौहान ने किया ।
भवदीय
मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, महासचिव जनवादी लेखक संघ
चंचल चौहान, महासचिव जनवादी लेखक संघ
Thursday, June 16, 2011
Monday, June 13, 2011
नागार्जुन पर विशेषांक
जनवादी लेखक संघ
42 अशोक रोड, नयी दिल्ली-110001
फोन: 23738015
जनवादी लेखक संघ, सहमत, जन नाट्य मंच, एक्ट वन मिल कर नागार्जुन जन्मशती उत्सव 15 जून 2011 को शाम 5.30 बजे त्रिवेणी सभागार, मंडी हाउस, नयी दिल्ली में आयोजित कर रहे हैं !
इस अवसर पर नया पथ के नागार्जुन जन्मशती विशेषांक का लोकार्पण भी होगा !
आप मित्रों सहित इस उत्सव में शामिल हों ! निमंत्रण कार्ड संलग्न है !
निवेदक
मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, महासचिव, जनवादी लेखक संघ
चंचल चौहान, महासचिव, जनवादी लेखक संघ
42 अशोक रोड, नयी दिल्ली-110001
फोन: 23738015
जनवादी लेखक संघ, सहमत, जन नाट्य मंच, एक्ट वन मिल कर नागार्जुन जन्मशती उत्सव 15 जून 2011 को शाम 5.30 बजे त्रिवेणी सभागार, मंडी हाउस, नयी दिल्ली में आयोजित कर रहे हैं !
इस अवसर पर नया पथ के नागार्जुन जन्मशती विशेषांक का लोकार्पण भी होगा !
आप मित्रों सहित इस उत्सव में शामिल हों ! निमंत्रण कार्ड संलग्न है !
निवेदक
मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, महासचिव, जनवादी लेखक संघ
चंचल चौहान, महासचिव, जनवादी लेखक संघ
Thursday, June 9, 2011
मक़बूल फि़दा हुसैन
प्रेस विज्ञप्ति
जनवादी लेखक संघ मशहूर चित्रकार मक़बूल फि़दा हुसैन के आकस्मिक निधन पर गहरा शोक व्यक्त करता है। हुसैन साहब दुनिया के चोटी के कलाकारों में गिने जाते थे। जीवन भर शिशुवत मासूमियत के साथ अपने कलाकर्म में जुटे इस महान कलाकार ने चित्रकला को एक नया आयाम दिया और हमारे देश की साझा संस्कृति को समृद्ध करने में जो योगदान दिया उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। यह दुखद ही है कि इस महान कलाकार को, हिंदू सांप्रदायिक ताक़तों ने सैकड़ों मुकदमें दायर करके़, इतना परेशान किया कि उन्हें अपना प्यारा वतन छोड़ कर निर्वासन का दर्द झेलना पड़ा और एक अन्य देश की नागरिकता लेनी पड़ी। सत्ताधारी कांग्रेस की गठबंधन सरकार ने भी इस कलाकार को सम्मानजनक तरीके़ से वतन वापस लाने की कभी कोशिश नहीं की।
जनवादी लेखक संघ मक़बूल फि़दा हुसैन के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है और उनके परिवारजनों व मित्रों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करता है।
भवदीय
मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, महासचिव
चंचल चौहान, महासचिव
जनवादी लेखक संघ मशहूर चित्रकार मक़बूल फि़दा हुसैन के आकस्मिक निधन पर गहरा शोक व्यक्त करता है। हुसैन साहब दुनिया के चोटी के कलाकारों में गिने जाते थे। जीवन भर शिशुवत मासूमियत के साथ अपने कलाकर्म में जुटे इस महान कलाकार ने चित्रकला को एक नया आयाम दिया और हमारे देश की साझा संस्कृति को समृद्ध करने में जो योगदान दिया उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। यह दुखद ही है कि इस महान कलाकार को, हिंदू सांप्रदायिक ताक़तों ने सैकड़ों मुकदमें दायर करके़, इतना परेशान किया कि उन्हें अपना प्यारा वतन छोड़ कर निर्वासन का दर्द झेलना पड़ा और एक अन्य देश की नागरिकता लेनी पड़ी। सत्ताधारी कांग्रेस की गठबंधन सरकार ने भी इस कलाकार को सम्मानजनक तरीके़ से वतन वापस लाने की कभी कोशिश नहीं की।
जनवादी लेखक संघ मक़बूल फि़दा हुसैन के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है और उनके परिवारजनों व मित्रों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करता है।
भवदीय
मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, महासचिव
चंचल चौहान, महासचिव
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