दिनांक 14 फरवरी 2012
उर्दू के प्रसिद्ध शायर शहरयार के निधन पर
श्रद्धांजलि
उर्दू के प्रसिद्ध शायर अखलाक़ मोहम्मद खान शहरयार’ के निधन पर जनवादी लेखक संघ गहरा शोक व्यक्त करता है। वे कुछ समय से फेफड़े के कैंसर से पीडि़त थे। शहरयार का जन्म बरेली, उत्तर प्रदेश के गांव आंवला में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा बुलंदशहर में और उच्च शिक्षा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में हुई थी। इसी विश्वविद्यालय में उन्होंने उर्दू के शिक्षक के रूप में काम किया। वे उर्दू विभाग के अध्यक्ष और प्रोफेसर भी रहे और वहीं से 1996 में सेवानिवृत्त हुए। शहरयार अपनी ग़ज़लों के लिए बहुत लोकप्रिय थे। उनकी शायरी में यथार्थ और रूमानियत दोनों एक साथ इतनी खूबसूरती से व्यक्त हुए हैं कि उनको अलग-अलग करना लगभग नामुमकिन है। अपने नज़रिये में वे प्रगतिशील भावबोध के कवि थे। उनका पहला काव्यसंग्रह ‘इस्म ए आज़म’ था, जो 1965 में प्रकाशित हुआ। उनके अन्य लोकप्रिय काव्यसंग्रह हैं: ‘हिज्र का मौसम’, ‘सातवां दर’, ‘शाम होने वाली है’, ‘मिलता रहूंगा ख्वाब में’, ‘नींद की किर्चें’ आदि। उनको 1987 में अपने काव्यसंग्रह ‘ख्वाब का दर बंद है’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ। 2008 में उन्हें सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। शहरयार ने प्रसिद्ध फिल्मकार मुजफ्फर अली की फिल्मों ‘गमन’(1978), ‘उमराव जान’(1981) और ‘अंजुमन’ (1986)के लिए भी गीत लिखे जो बहुत ही लोकप्रिय हुए।
जनवादी लेखक संघ की स्थापना के समय से ही शहरयार जलेस से जुड़े रहे। वे संगठन के उपाध्यक्ष भी रहे और सम्मेलनों में शिरकत करते रहे। उनके देहावसान से उर्दू का एक बहुत बड़ा शायर हमारे बीच से चला गया। यह एक अपूरणीय क्षति है। जनवादी लेखक संघ उनके प्रति अपनी भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित करता है और उनके परिवारजनों के प्रति अपनी हार्दिक संवेदना व्यक्त करता है।
मुरलीमनोहर प्रसाद सिंह, महासचिव
चंचल चौहान, महासचिव
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