दिनांक 25-5-2012
प्रेस विज्ञप्ति
जनवादी लेखक संघ हिंदी के जाने माने कवि रचनाकार भगवत रावत के आकस्मिक निधन पर गहरा शोक व्यक्त करता है। वे अचानक बीमार पड़े और आज 25 मई 2012 को भोपाल में उनका देहांत हो गया । भगवत रावत का जन्म ग्राम टेहरका, ज़िला टीकमगढ़, मध्यप्रदेश, में 13 सितंबर 1939 को हुआ था। उनकी कृतियों में समुद्र के बारे में (1977), दी हुई दुनिया (1981), हुआ किस इस तरह (1988), सुनो हीरामन (1992), सच पूछो तो (1996), बिथा-कथा (1997) अथ रूपकुमार कथा, अम्मा से बातें और कुछ लंबी कविताएं, विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। उनकी बहुत सी कविताएं रूसी भाषा में अनूदित हुईं। उन्हें दुष्यंत कुमार पुरस्कार (1979), वागीश्वरी पुरस्कार (1989), मध्यप्रदेश शासन द्वारा साहित्य का शिखर-सम्मान (1997-98) से सम्मानित किया गया।
भगवत रावत प्रगतिशील जनवादी मूल्यों के प्रति समर्पित रचनाकार थे, वे मध्यप्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष रहे और अपनी सामाजिक विचारधारात्मक प्रतिबद्धता कभी विचलित नहीं हुए। उनकी रचनाओं में शोषित उत्पीड़ित मानव की आशा-आकांक्षाएं चित्रित होती रहीं, और उसके प्रति ‘ढेर सारी करुणा’ की मांग उस मध्यवर्ग से करती रहीं, जो इस दौर में हृदयहीन होता दिख रहा है, अपनी एक कविता, ‘करुणा’ का अंत वे इस प्रकार करते हैं:
पता नहीं
आने वाले लोगों को दुनिया कैसी चाहिए
कैसी हवा कैसा पानी चाहिए
पर इतना तो तय है
कि इस समय दुनिया को
ढेर सारी करुणा चाहिए।
शोषितवर्गों के प्रति अपनी ढेर सारी करुणा समर्पित करने वाला यह कवि इस दुनिया विदा भले ही हो गया हो, मगर उसकी रचनात्मकता हमें सदैव आगे बढ़ने और संगठित रूप में जनवादी प्रगतिशील मूल्यों के रचनाकर्म द्वारा अपने सांस्कृतिक दायित्व का निर्वाह करने की प्रेरणा सदैव देती रहेगी।
जनवादी लेखक संघ भगवत रावत के प्रति अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है और उनके परिवारजनों के प्रति अपनी संवेदना प्रकट करता है।
मुरली मनोहर प्रसाद सिंह चंचल चौहान
महासचिव महासचिव
Mobile: 9811119391
प्रेस विज्ञप्ति
जनवादी लेखक संघ हिंदी के जाने माने कवि रचनाकार भगवत रावत के आकस्मिक निधन पर गहरा शोक व्यक्त करता है। वे अचानक बीमार पड़े और आज 25 मई 2012 को भोपाल में उनका देहांत हो गया । भगवत रावत का जन्म ग्राम टेहरका, ज़िला टीकमगढ़, मध्यप्रदेश, में 13 सितंबर 1939 को हुआ था। उनकी कृतियों में समुद्र के बारे में (1977), दी हुई दुनिया (1981), हुआ किस इस तरह (1988), सुनो हीरामन (1992), सच पूछो तो (1996), बिथा-कथा (1997) अथ रूपकुमार कथा, अम्मा से बातें और कुछ लंबी कविताएं, विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। उनकी बहुत सी कविताएं रूसी भाषा में अनूदित हुईं। उन्हें दुष्यंत कुमार पुरस्कार (1979), वागीश्वरी पुरस्कार (1989), मध्यप्रदेश शासन द्वारा साहित्य का शिखर-सम्मान (1997-98) से सम्मानित किया गया।
भगवत रावत प्रगतिशील जनवादी मूल्यों के प्रति समर्पित रचनाकार थे, वे मध्यप्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष रहे और अपनी सामाजिक विचारधारात्मक प्रतिबद्धता कभी विचलित नहीं हुए। उनकी रचनाओं में शोषित उत्पीड़ित मानव की आशा-आकांक्षाएं चित्रित होती रहीं, और उसके प्रति ‘ढेर सारी करुणा’ की मांग उस मध्यवर्ग से करती रहीं, जो इस दौर में हृदयहीन होता दिख रहा है, अपनी एक कविता, ‘करुणा’ का अंत वे इस प्रकार करते हैं:
पता नहीं
आने वाले लोगों को दुनिया कैसी चाहिए
कैसी हवा कैसा पानी चाहिए
पर इतना तो तय है
कि इस समय दुनिया को
ढेर सारी करुणा चाहिए।
शोषितवर्गों के प्रति अपनी ढेर सारी करुणा समर्पित करने वाला यह कवि इस दुनिया विदा भले ही हो गया हो, मगर उसकी रचनात्मकता हमें सदैव आगे बढ़ने और संगठित रूप में जनवादी प्रगतिशील मूल्यों के रचनाकर्म द्वारा अपने सांस्कृतिक दायित्व का निर्वाह करने की प्रेरणा सदैव देती रहेगी।
जनवादी लेखक संघ भगवत रावत के प्रति अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है और उनके परिवारजनों के प्रति अपनी संवेदना प्रकट करता है।
मुरली मनोहर प्रसाद सिंह चंचल चौहान
महासचिव महासचिव
Mobile: 9811119391
No comments:
Post a Comment