उसके बाद नया पथ के नागार्जुन जन्मशती विशेषांक के लोकार्पण के साथ परिचर्चा का सत्र शुरू हुआ जिसमें प्रो. शिवकुमार मिश्र(गुजरात), राजेश जोशी (भोपाल) ने अपने विचार रखे और डा. नामवरसिंह ने अध्यक्षता की। शिवकुमार मिश्र ने नागार्जुन के जीवन संघर्षों और उनके बहुआयामी रचनाकर्म को उनकी कविताओं के अर्थ खोलते हुए पेश किया जबकि राजेश जोशी ने बाबा के मैग्नीफाइंग ग्लास और ट्रांजिस्टर का जिक्र करते हुए उनकी प्रतीकात्मकता को रेखांकित किया। अध्यक्षीय भाषण में नामवर जी ने नागार्जुन पर लिखे अपने लेखों का उल्लेख करते हुए कहा कि उन जैसा प्रयोगधर्मा कवि कम ही देखने को मिलता है चाहे वे प्रयोग लय के हों, छंद के हों, विषयवस्तु के हों, वे सच्चे अर्थों में जनकवि थे।
इस आयोजन की सबसे आकर्षक विशिष्टता यह थी कि नागार्जुन की कविताओं को दृश्य-श्रव्य कलारूपों के माध्यम से शास्त्रीयसंगीत गायिका अंजना पुरी और सूफी संगीत गायक मदनगोपाल सिंह ने अनोखा रूप दिया जिनकी प्रस्तुतियों पर दर्शक मुग्ध हो कर तालियो की गड़गड़ाहट से उनको दाद देते रहे। बीच बीच में नागार्जुन की कविताओं का पाठ जाने माने रचनाकारों ने किया जिनमें प्रमुख थे, जुबैर रज़वी, मैत्रेयी पुष्पा, लीलाधर मंडलोई, दिनेश कुमार शुक्ल, मंगलेश डबराल और अशोक तिवारी। एन एस डी के रंगकर्मी केशव के निर्देशन में ‘बिगुल’ नाट्यग्रुप ने बाबा की कविताओं का एक नाट्य-कोलाज पेश किया जिसकी सात कडि़या थीं और यह एक अनोखा प्रयोग भी था।
अंत में नागार्जुन की कविता ‘मेघ बजे’ को शास्त्रीय संगीत की बंदिश में जन नाट्य मंच(कुरुक्षेत्र) के कलाकारों ने पेश किया जिसकी काफी सराहना हुई।
आयोजन का संचालन जलेस के महासचिव, चंचल चौहान ने किया ।
भवदीय
मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, महासचिव जनवादी लेखक संघ
चंचल चौहान, महासचिव जनवादी लेखक संघ
No comments:
Post a Comment