Monday, July 12, 2010

नया पथ का ताजा अंक


नया पथ अप्रैल-जून 2010 का अंक छपकर वितरित हो रहा है। इस अंक की सामग्री का विवरण इस प्रकार है:
अनुक्रम


संपादकीय : जनता के नाम पर जनता के विरुद्ध
जन्म शताब्दी पर विशेष
हैरियट बीचर स्टो की दूसरी शतवार्षिकी पर
दासप्रथा और रंगभेद के विरुद्ध खड़ी एक अमेरिकी महिला : कांतिमोहन
टाम काका की कुटिया : एक अंश
केदारनाथ अग्रवाल की जन्मशती पर
प्रकृति और प्रगतिशीलता के कवि केदार : वैभव सिंह
नागार्जुन की जन्म शती पर
इधर देखो इन घुच्ची आंखों में : बोधिसत्व
विज्ञान
तलाश ब्रह्मांड के अतीत की : धीरंजन मालवे
ज्वलंत प्रश्न
अरुंधती राय और उनका क्रांति का कैरीकेचर : राजेंद्र शर्मा
कहानी
डील : सनतकुमार
पंखा : बिक्रम सिंह
मज़बाह की भेड़ें : खुर्शीद अकरम
पुनर्मूल्यांकन
जैनेंद्र कुमार के उपन्यास और स्त्री-अस्मिता का संघर्ष :
जवरीमल्ल पारख
मंटो की कहानियों में अश्लीलता का मुद्दा :
शिवानी चोपड़ा
कविताएं
मां जैसी वह औरत : सुरेश सेन निशांत
पहाड़ों के पीछे की हंसी : मनीषा जैन
क्या मां देशद्रोही है? : शिवदत्ता बावलकर
दो कविताएं : कुलदीप शर्मा
कविता
कोई नहीं जानता
गज़ल :
अली बाकर ज़ैदी
दो कविताएं : युगल गजेंद्र
लुटेरे (1)
लुटेरे (2)
पुस्तक धरोहर
अमेरिकी इतिहास एक अलग आइने में : शशिभूषण उपाध्याय
वैज्ञानिक दृष्टि और रहस्यवाद का द्वंद्व : देवीप्रसाद मौर्य
जनता का इतिहास, जनता के नज़रिये से : सलिल मिश्र
कला और सिनेमा
अब दिल्ली दूर नहीं : मिहिर पांड्या
सुनील जाना का श्वेत श्याम संसार : राम रहमान
स्मृति शेष
लोकरंग की आंच में पकाया हबीब ने अपना रंगलोक : सुभाष चंद्र
कैलोरा गांव की वह रौशनी...(डा. कुंवरपाल सिंह को याद करते हुए) : प्रदीप सक्सेना
बदलते यथार्थ के संवेगों का साधक : मार्कंडेय : अरुण माहेश्वरी
आन बान शान वाले मुहम्मद हसन : ज़ुबैर रज़वी
डॉ. मुहम्मद हसन से एक यादगार बातचीत : वकार सिद्दीकी
आलोचना विमर्श
मुक्ति और आलोचना
प्रमीला के पी
अर्चना वर्मा
अनामिका
पुस्तक समीक्षा
मुन्नी मोबाइल उर्फ हमारे समय का नरक गुलज़ार : धर्मेंद्र सुशांत
अग्नि में तपकर निकले कुंदन की कहानी : राकेश कुमार सिंह
शिलाओं से शिराओं तक : विपिन चौधरी
व्यंग्य
आज़ादी की तीसरी लड़ाई : राजेंद्र शर्मा